Mohammad Shahid house demolition काशी का सवाल: ओलंपिक विजेता मोहम्मद शाहिद का घर उजड़ा, क्या यही है खिलाड़ियों का सम्मान
Mohammad Shahid house demolition ओलंपिक गोल्ड मेडलिस्ट और पद्मश्री से सम्मानित हॉकी खिलाड़ी मोहम्मद शाहिद का घर वाराणसी में बुलडोज़र से गिरा दिया गया। सरकार और समाज से सवाल उठता है कि क्या यही है हमारे नायकों का सम्मान?
भारत की धरती ने हमेशा अपने नायकों को सलाम किया है। जिन खिलाड़ियों ने देश का नाम रोशन किया, उन्हें हम हीरो मानते हैं। लेकिन सवाल उठता है—क्या हमारे हीरो सिर्फ़ खेल के मैदान तक ही सीमित हैं? उनके बूढ़े होने या दुनिया से जाने के बाद क्या उनकी विरासत और उनके परिवार की कोई अहमियत नहीं रह जाती?
Mohammad Shahid house demolition वाराणसी (काशी) की एक घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया है। भारतीय हॉकी टीम के पूर्व कप्तान, पद्मश्री और अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित, ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता दिवंगत मोहम्मद शाहिद का घर बुलडोज़र से ढहा दिया गया। यह वही शाहिद हैं जिनकी हॉकी स्टिक ने 1980 मास्को ओलंपिक में भारत को स्वर्ण दिलाया था और देश का झंडा पूरी दुनिया में बुलंद किया था।
Mohammad Shahid house demolition आज उनके परिवार के पास न तो सिर छिपाने की जगह बची और न ही सरकार की ओर से कोई मदद। सवाल यह है कि जिस देश ने कभी उन्हें ‘भारत का गौरव’ कहा, उसी देश की सरकारें उनके परिवार को सम्मानजनक जीवन देने में क्यों नाकाम रहीं?

Mohammad Shahid house demolition मोहम्मद शाहिद: भारत की हॉकी का सुनहरा सितारा
मोहम्मद शाहिद सिर्फ़ खिलाड़ी नहीं थे, वे भारतीय हॉकी का वह चेहरा थे जिनके ड्रिब्लिंग कौशल ने दुनिया को हैरान कर दिया। मैदान पर उनकी मौजूदगी का मतलब होता था—भारत की जीत की उम्मीद। 1980 मास्को ओलंपिक में भारत ने जो गोल्ड मेडल जीता, उसमें शाहिद का योगदान अविस्मरणीय रहा।
उनके प्रदर्शन के लिए उन्हें अर्जुन अवॉर्ड और फिर पद्मश्री से सम्मानित किया गया। लेकिन दुखद यह है कि जिस देश ने उन्हें सम्मान के कागज़ दिए, वही देश उनके परिवार को ज़िंदगी जीने की बुनियादी ज़रूरतें भी नहीं दे पाया।
Mohammad Shahid house demolition बुलडोज़र की मार: परिवार हुआ बेघर
काशी की गलियों में बीते दिनों ऐसा नज़ारा देखने को मिला जिसे देखकर हर संवेदनशील इंसान का दिल पसीज जाएगा। शाहिद का घर, जहां उनकी यादें बसी थीं, जहां उनका परिवार अपने गौरवशाली अतीत को याद करता था, उस पर बुलडोज़र चला दिया गया।
Mohammad Shahid house demolition आज उनकी पत्नी और बच्चे भटकने को मजबूर हैं। यह सवाल केवल शाहिद के परिवार का नहीं है, बल्कि उन तमाम खिलाड़ियों का है जिन्होंने देश के लिए पसीना और खून बहाया। क्या उनकी मेहनत और उपलब्धियां सिर्फ़ तिरंगे लहराने तक ही सीमित हैं?
एक ओर उद्योगपतियों को ज़मीन, दूसरी ओर नायकों का परिवार बेघर
Mohammad Shahid house demolition वह बिंदु है जो जनता को सबसे ज़्यादा आहत करता है। जब देश की सरकारें बड़े उद्योगपतियों को हज़ारों एकड़ ज़मीन महज़ एक रुपये में दे सकती हैं, तो फिर एक छोटे से घर को बचाने में इतनी मजबूरी क्यों?
यह तुलना अपने आप में सवाल खड़ा करती है कि सरकार की प्राथमिकताएं क्या हैं—देश का नाम रोशन करने वाले खिलाड़ी या अरबों की दौलत रखने वाले उद्योगपति?
Mohammad Shahid house demolition खिलाड़ियों के सम्मान का असली मायना
सच यह है कि भारत में खिलाड़ी मैदान पर जीतते हैं, लेकिन ज़िंदगी के असली मैदान में हार जाते हैं। जब तक खिलाड़ी चमकते हैं, तब तक सरकार और समाज उन्हें सम्मानित करते हैं, मेडल पहनाते हैं, फोटो खिंचवाते हैं। लेकिन उनके बूढ़े होने या गुजर जाने के बाद वही समाज और वही सरकार उन्हें भूल जाती है।
मोहम्मद शाहिद का मामला सिर्फ़ एक घटना नहीं है, बल्कि यह उस प्रणाली की नाकामी है जिसमें खिलाड़ियों को केवल इस्तेमाल किया जाता है।
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Mohammad Shahid house demolition काशी से उठता सवाल
काशी की मिट्टी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सांसद चुना है। ऐसे में जब काशी में ही भारत के हॉकी नायक का घर उजड़ा, तो यह सवाल सीधे प्रधानमंत्री से भी जुड़ता है।
क्या यह वही काशी है जिसे विकास का मॉडल बताया जाता है? क्या यह वही बनारस है जहां से “सबका साथ, सबका विकास” का नारा दिया गया? अगर एक खिलाड़ी का परिवार ही सम्मानजनक जीवन से वंचित है, तो आम इंसान किस भरोसे पर जिएगा?
Mohammad Shahid house demolition अब भी वक़्त है बदलाव का
जरूरत है कि इस घटना को केवल समाचार बनकर न रहने दिया जाए। मोहम्मद शाहिद का घर गिराया गया है, लेकिन उनके सम्मान को उठाना अब भी हमारे हाथ में है। सरकार चाहे तो उनके परिवार को आवास दे सकती है, उनके नाम पर खेल अकादमी बना सकती है, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ जान सकें कि देश ने अपने नायकों को कैसे सम्मान दिया।
अगर यह कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले खिलाड़ी क्या विश्वास करेंगे कि देश उनके साथ खड़ा है?
जनता की ज़िम्मेदारी भी कम नहीं
केवल सरकार ही दोषी नहीं है। समाज की भी ज़िम्मेदारी है कि वह अपने नायकों और उनके परिवारों के लिए खड़ा हो। मोहम्मद शाहिद का नाम सिर्फ़ एक खिलाड़ी का नाम नहीं, बल्कि भारत की जीत की पहचान है। ऐसे में समाज को भी आवाज़ उठानी चाहिए ताकि आने वाले समय में कोई और खिलाड़ी और उसका परिवार इस अपमानजनक स्थिति से न गुज़रे।
निष्कर्ष
मोहम्मद शाहिद का घर गिरा दिया गया, लेकिन यह घटना हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हम अपने असली नायकों के साथ न्याय कर रहे हैं? ओलंपिक में गोल्ड लाने वाला खिलाड़ी आज बेघर हो जाए, तो यह केवल एक परिवार की त्रासदी नहीं है, बल्कि पूरे देश की हार है।
सरकार से लेकर समाज तक, सभी को यह समझना होगा कि खिलाड़ियों का सम्मान सिर्फ़ पुरस्कार और तालियों से नहीं होता, बल्कि उनकी विरासत और उनके परिवार की देखभाल से होता है।
डिस्क्लेमर
यह लेख केवल उपलब्ध समाचारों और जनभावनाओं पर आधारित है। इसमें व्यक्त विचार किसी राजनीतिक दल या व्यक्ति के विरोध या समर्थन के लिए नहीं हैं, बल्कि खिलाड़ियों के सम्मान और उनके परिवारों के अधिकारों पर ध्यान आकर्षित करने के उद्देश्य से लिखे गए हैं।
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