भारत रंग महोत्सव में नाटक गोरधन के जूते का मंचन

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भारत रंग महोत्सव में नाटक गोरधन के जूते का मंच

*हास्य-करुण रस, रिश्तों की मिठास और लोक जीवन की सरलता से साक्षात्कार करवाती है नाटक गोरधन के जूते की कहानी*

*युवा निर्देशक देशराज गुर्जर के निर्देशन में 40 कलाकारों की टीम ने सुनाई कहानी, खूब मिली तालियां*

*रंगमंच से ही हमारे जीवन में रंग है – डी आई जे आनंद कुलकर्णी*

*भारंगम गोरखपुर का आयोजन गोरखपुर के रंग प्रेमियों के उत्साह और लगन की देन – बी एन ए निदेशक बिपिन कुमार सिंह*

*भारंगम के समापन समारोह में शिप्रा दयाल के गाये लोक गीतों से श्रोता झूम उठे*

गोरखपुर। बाबा योगी गंभीरनाथ प्रेक्षागृह में चल रहे पांच दिवसीय भारत रंग महोत्सव भारंगम में आखिरी दिन शुक्रवार को नाट्य निर्देशक देशराज गुर्जर के लिखित और निर्देशित नाटक ‘गोरधन के जूते’ का मंचन हुआ। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय नई दिल्ली की ओर से आयोजित भारंगम महानिदेशालय,पर्यटन एवं संस्कृति, उत्तर प्रदेश सरकार तथा भारतेन्दु नाट्य अकादमी लखनऊ के सहयोग से किया गया। गोरधन के जूते’ नाटक का नाम एक कौतूहल पैदा करता है, लेकिन नाटक की कहानी दर्शकों को हास्य-करुण रस, रिश्तों की मिठास और लोक जीवन की सरलता से साक्षात्कार करवाती है। नाटक का आधार दो दोस्तों केसर जमींदार और सरपंच बंसी के स्वर्गीय पिता द्वारा किया गया पोते-पोती के विवाह का वादा है।
कहानी को मोड़ देने के लिए निर्देशक ने नायिका के बड़े पैर की बात को केन्द्र बनाया और दर्शाया कि विवाह के घर में कैसे छोटी-छोटी बातें मुश्किलें खड़ी कर देती है। समाज का रवैया राई का पहाड़ बनाता है। इसकी बलि चढ़ते हैं रिश्ते और प्रेम। ऐसी समस्याओं का एक ही समाधान नजर आता है। वो है आपसी समझदारी। नाटक एक शादी के चलचित्र की तरह है। इसके पात्र हर शादी के घर में आपको दिख जाएंगे। लोक गीत, बोली, पहनावे और प्रोप्स को इतनी सादगी से नाटक में उपयोग लिया गया है कि दर्शक नाटक को देखते नहीं, जीने लगते हैं।


बाबा योगी गंभीरनाथ प्रेक्षागृह अब सभागार नहीं शादी का घर बन चुका है। बंसी के घर में मथरा की शादी की तैयारियां चल रही है। महिलाएं मंगल गीत गा रही है। इसी बीच दीपू का पिता केसर मथरा के पैर की नाप लेने आता है। मथरा जो पैर का पंजा बड़ा होने के कारण अब तक अपने पिता की जूतियों को पीछे से मोड़कर पहना करती थी, उसके नाप की चप्पल ढूंढना बंसी के लिए भारी पड़ जाता है। यह सरल सी बात मथरा के लिए समस्या बन जाती है। हीरामल महाराज की ज्योत करवाई जाती है। ‘बंसी तू छोरी का बड़ा पैरा न देख रियो छै, इका बड़ा-बड़ा सपना न देख सारी दिक्कत दूर हो जावे ली, ईश्वर एक बार जीन जसो बणा दिया वो बणा दिया।’ हीरामल महाराज की वाणी बड़ा संदेश देती है लेकिन लोक लाज की रस्सी बंसी और मथरा के गले में फंदे की तरह जकड़ती जाती है। बंसी का भांजा जो शहर से आता है वो दिल्ली से जॉर्डन के जूते लाकर मथरा को पहनाने का सुझाव देता है। विदेशी ब्रांड जॉर्डन गांव में गोरधन के नाम से मशहूर हो जाता है। बंसी और केसर दिल्ली जूते लेने के लिए जाते हैं। शहर में उनके बीच तकरार हो जाती है जिससे शादी रुक जाती है। केसर के काका की सूझबूझ से बात बन जाती है। दीपू बारात लेकर आता है तो मथरा घर छोड़कर जाने लगती है। अंत में वह अपने पिता को बताती है, ‘मेरा नेशनल लेवल बास्केटबॉल टूर्नामेंट में सिलेक्शन हो गया है, मैं अभी शादी करना नहीं खेलना चाहती हूं, मैं जीतूंगी तो तुम्हारा नाम ही रोशन करुंगी।’ दीपू भी मथरा का साथ देता है और दोनों चले जाते है।
विभिन्न भूमिकाओं में देशराज गुर्जर, पंकज शर्मा, अनिमेष आचार्य, प्रतीक्षा सक्सेना, पंकज चौहान,आरिफ़ खान, सचिन सौखरिया, प्रदीप बंजारा,महिपाल, मधु देवासी, सुरभि दयामा, भानुप्रिया सैनी, मोहित बंसल, नितेश वर्मा,जे डी, कृष्ण पाल सिंह, शुभम सोयल, मनीष गोरा, जीतेन्द्र देवनानी, जया शर्मा,विकास शर्मा, वेद प्रकाश,प्रांजल गुर्जर,दीपक सैनी, शालिनी कुमारी,और अजीत सिंह सौखरिया ने उल्लेखनीय किरदार निभाया।
इससे पहले भारत रंग महोत्सव भारंगम के समापन समारोह के मुख्य अतिथि उपमहानिरीक्षक परिक्षेत्र गोरखपुर आनंद कुलकर्णी पुलिस ने कहा कि जीवन एक रंगमंच है। हर दिन एक नया अभिनय होता रहता है। रंगमंच से ही हमारे जीवन में रंग है। विशिष्ट अतिथि भारतेंदु नाट्य अकादमी लखनऊ के निदेशक बिपिन कुमार सिंह ने कहा कि भारंगम गोरखपुर का आयोजन गोरखपुर के रंग प्रेमियों के उत्साह और लगन की देन है इसके लिए संस्कृति विभाग उत्तर प्रदेश ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उपनिदेशक संस्कृति विभाग यशवन्त सिंह राठौर ने कहा कि भारंगम का गोरखपुर में आयोजन गोरखपुर की समृद्धि रंग परंपरा को और समृद्ध करता है। समारोह में पारम्परिक लोकगीतों की भी बयार बही। शहर की मशहूर गायिका शिप्रा दयाल ने एक से बढ़कर एक गीत सुनाये जिनमें देवी गीत जगदम्बा घर में दियना, दादरा रंग सारे गुलाबी चुनरियां, बारामासा नयी झुलनी के छइयां, धमार अखियां भइले लाल एक नींद सुते द बलमुआ, उलारा हम त खेलत रहलीं अम्मा जी के गोदिया सुनाया तो दर्शक झूम उठे। शिप्रा दयाल के साथ की बोर्ड पर शिवम् गौंड, ढोलक पर दिलीप कुमार, तबले पर पींटू प्रीतम और पैड पर शुभम श्रीवास्तव ने संगत किया। कार्यक्रम के आखिर में भारंगम के गोरखपुर प्रभारी व नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा के पी बैट्री भूपति ने सभी का आभार जताया जबकि कार्यक्रम का उत्कृष्ट संचालन मृत्युंजय उपाध्याय नवल ने किया। भारंगम के सफलता पूर्ण करने पर भरंगम के गोरखपुर समन्वयक श्री नारायण पाण्डेय ने गोरखपुर की देवतुल्य जनता को धन्यवाद दिया।

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