‘New Labour Code’ पर देशभर में बवाल: सरकार ने फायदे गिनाए, मजदूर संगठनों ने बताया“ये तो अधिकार छीनने वाला कानून है”
New Labour Code को लेकर 10 ट्रेड यूनियनों का देशभर में विरोध, मजदूर संगठनों ने अधिकार खत्म होने का आरोप लगाया, सरकार ने बताया बड़ी आर्थिक सुधार की शुरुआत। पूरा विवाद समझें।

भारत में लागू किए गए New Labour Code को लेकर बहस और विरोध लगातार बढ़ रहा है। सरकार ने इसे देश के श्रमिकों और कर्मचारियों के लिए “ऐतिहासिक सुधार” बताया था, लेकिन मजदूर संगठनों का मानना है, कि यह कानून मजदूरों की कमर तोड़ देगा। 26 नवंबर को देशभर में 10 ट्रेड यूनियनों और कई किसान संगठनों ने सड़क पर उतरकर New Labour Code को तुरंत वापस लेने की मांग की। इस विरोध में औपचारिक और अनौपचारिक दोनों सेक्टर के लाखों श्रमिक शामिल हुए। उनके अनुसार, नया कानून उद्योगपतियों के दबाव में तैयार किया गया है और यह कामगारों के अधिकारों को कमजोर कर देगा।
सरकार ने पुराने 44 लेबर कानूनों को हटाकर चार बड़े लेबर कोड लागू किए कोड ऑन वेज, सोशल सिक्योरिटी कोड, ऑक्यूपेशनल सेफ्टी एंड हेल्थ कोड और इंडस्ट्रियल रिलेशन कोड। केंद्र का दावा है, कि New Labour Code से देश की अर्थव्यवस्था मजबूत होगी, मजदूरी सुधार होंगे और सामाजिक सुरक्षा दायरा बढ़ेगा। लेकिन ट्रेड यूनियनों का आरोप है,कि सुधार के नाम पर मजदूरों से उनका संघर्षों से हासिल अधिकार छीन लिया गया है। यूनियनों का कहना है,कि यह बदलाव एकतरफा है, और सरकार ने उनकी आपत्तियों पर ध्यान नहीं दिया।
सबसे विवादित बिंदु इंडस्ट्रियल रिलेशन कोड का है। पहले 100 कर्मचारियों से अधिक वाली कंपनियों को छंटनी या बंद करने के लिए सरकार से अनुमति लेनी पड़ती थी। अब यह सीमा बढ़ाकर 300 कर दी गई है। यानी 299 तक कर्मचारियों वाली कंपनियां मनमानी तरीके से बंद हो सकती हैं। मजदूर संगठनों के मुताबिक, इससे लाखों कर्मचारियों की नौकरी असुरक्षित हो जाएगी। वे कहते हैं कि New Labour Code छोटे उद्योगों को नहीं, बल्कि बड़े कॉरपोरेट हाउस को फायदा पहुंचाएगा।
हड़ताल के अधिकार पर भी बड़ा विवाद है। पहले 15 दिन के नोटिस के बाद कर्मचारी हड़ताल कर सकते थे, लेकिन नए प्रावधान में 60 दिन पहले नोटिस देना अनिवार्य कर दिया गया है। इससे हड़ताल लगभग असंभव सी हो जाएगी। CITU के पदाधिकारियों का कहना है, कि यह मजदूरों की आवाज दबाने जैसा है। इसी के साथ सरकार ने यूनियनों की मान्यता के नियम भी बदल दिए हैं। किसी फैक्ट्री में जिस यूनियन को 51% मजदूरों का समर्थन मिलेगा, सरकार सिर्फ उसी यूनियन को मान्यता देगी। बाकी यूनियनें स्वाभाविक रूप से कमजोर हो जाएंगी। यह भी विरोध का बड़ा कारण है।
मजदूर संगठनों का आरोप है,कि नए कोड में लेबर कोर्ट खत्म कर दिए गए, जबकि नए बने ट्रिब्यूनल में न्याय पाना मुश्किल होगा। हिन्द मजदूर सभा के नेताओं ने बताया कि आज भारत में कामगारों के अधिकारों की रक्षा करने वाले नियम 70–80 साल के संघर्षों के बाद बने थे। लेकिन New Labour Code के कारण 44 में से 15 कानूनों को सीधा खत्म कर दिया गया और बाकियों को “रीपैकेज” करके मजदूर-हितैषी क्लॉज़ हटा दिए गए।
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फिक्स्ड टर्म एम्प्लॉयमेंट पर भी बड़ा विवाद है। सरकार कहती है, कि फिक्स्ड टर्म कर्मचारियों को नियमित कर्मचारियों जैसी सुविधाएं मिलेंगी। लेकिन यूनियनों का आरोप है, कि कंपनियां स्थायी नौकरियां खत्म करके कॉन्ट्रैक्ट और फिक्स्ड टर्म वर्कर रख लेंगी। इससे नौकरी की स्थिरता खत्म हो जाएगी। यह बदलाव भी New Labour Code पर सबसे बड़े आरोपों में शामिल है।
महिला श्रमिकों की सुरक्षा को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। नए कानून में महिलाओं को उनकी सहमति से रात में काम करने की अनुमति दी गई है, लेकिन CITU और अन्य यूनियनों ने पूछा—सुरक्षा व्यवस्था के कौन से ठोस उपाय कानून में दिए गए? वे कहते हैं कि सरकार ने ‘सुरक्षा की जिम्मेदारी’ सिर्फ कंपनियों पर छोड़ दी है, जबकि जमीन पर सबसे बड़ी समस्या महिलाओं के लिए सुरक्षित माहौल का अभाव है।
देशभर में विरोध प्रदर्शनों के बीच यूनियनों का कहना है कि New Labour Code तुरंत वापस लिया जाए और मजदूरों की सहमति से नए कानून बनाए जाएं। उनके मुताबिक, मजदूरों के हितों पर चोट करने वाला कोई भी कानून देश की अर्थव्यवस्था को कमज़ोर ही करेगा, मजबूत नही
DISCLAIMER इस लेख का उद्देश्य केवल जानकारी प्रदान करना है। यहां दर्शाए गए विचार प्रदर्शन कर रहे मजदूर संगठनों के दावों और सार्वजनिक रिपोर्टों पर आधारित हैं। सरकारी नीतियों पर अंतिम निर्णय आधिकारिक दस्तावेज़ों और अधिसूचनाओं के अनुसार ही मानें।









