Hate Speech Case: हेट स्पीच मामले में विधायक अब्बास अंसारी को 2 साल की सजा, भाई उमर अंसारी और मंसूर अंसारी को भी दोषी करार
मऊ, उत्तर प्रदेश, 31 मई 2025: Hate Speech Case: उत्तर प्रदेश के मऊ जिले से सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के विधायक अब्बास अंसारी को हेट स्पीच (घृणास्पद भाषण) के एक पुराने मामले में अदालत ने दोषी करार देते हुए 2 वर्ष की सजा सुनाई है। इसके साथ ही कोर्ट ने उन पर 2 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है।
यह मामला वर्ष 2022 का है, जब अब्बास अंसारी ने विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान एक मंच से कथित रूप से भड़काऊ भाषण दिया था। उनके इस भाषण को संप्रदायों के बीच नफरत फैलाने और शांति व्यवस्था को भंग करने की कोशिश माना गया था।
Hate Speech Case: मामला दर्ज होने की पृष्ठभूमि
यह मुकदमा 22 मार्च 2022 को थाना कोतवाली, मऊ में एफआईआर संख्या 97/22 के तहत दर्ज हुआ था। एफआईआर में अब्बास अंसारी के साथ उनके छोटे भाई उमर अंसारी और एक अन्य व्यक्ति मंसूर अंसारी को भी नामजद किया गया था। मामला भारतीय दंड संहिता की धाराओं 506 (आपराधिक धमकी), 153A (धर्म के आधार पर द्वेष फैलाना), 171F (चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित करना) और 189 (लोक सेवक को धमकी देना) के तहत दर्ज किया गया था।
कोर्ट का फैसला
मऊ के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी (CJM) की अदालत ने सभी पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद अब्बास अंसारी को दोषी मानते हुए 2 साल की सजा और 2 हजार रुपये का जुर्माना सुनाया। वहीं, मंसूर अंसारी को 6 महीने की सजा और 1000 रुपये जुर्माने की सजा सुनाई गई है।
हालांकि उमर अंसारी के संबंध में फैसला अभी स्पष्ट नहीं हुआ है, लेकिन उन पर भी मुकदमा दर्ज है और सुनवाई जारी है।
अभियोजन पक्ष की दलील
सरकारी वकील ने अदालत में तर्क दिया कि अब्बास अंसारी ने जानबूझकर एक चुनावी सभा के दौरान ऐसे शब्दों का प्रयोग किया, जिससे विशेष समुदाय के लोगों में आक्रोश और अन्य समुदायों के प्रति नफरत फैल सकती थी। अभियोजन पक्ष ने यह भी कहा कि ऐसी बातें लोकतंत्र की मर्यादा के विरुद्ध हैं और इससे समाज में विघटनकारी प्रवृत्तियों को बल मिलता है।
अदालत में पीड़ित पक्ष की ओर से कहा गया कि अंसारी परिवार लगातार अपने प्रभाव का दुरुपयोग करता रहा है और इस मामले में कड़ी सजा देकर समाज को एक मजबूत संदेश दिया जाना चाहिए।
बचाव पक्ष की दलील
अब्बास अंसारी की ओर से उनके अधिवक्ता ने दलील दी कि भाषण के दौरान उन्होंने किसी विशेष समुदाय का नाम नहीं लिया और उनका मकसद केवल चुनावी राजनीति के तहत अपने समर्थकों में जोश भरना था। Hate Speech Case: वकील ने यह भी कहा कि भाषण को उसके संपूर्ण संदर्भ से हटाकर देखा गया है।
बचाव पक्ष ने सजा की अवधि को कम करने की भी अपील की और यह तर्क दिया कि अब्बास अंसारी एक निर्वाचित जनप्रतिनिधि हैं और उनके खिलाफ राजनीतिक दुर्भावना के चलते यह मामला दर्ज किया गया है।
कोर्ट की टिप्पणी
Hate Speech Case: मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी ने अपने फैसले में कहा कि एक जनप्रतिनिधि होने के नाते अब्बास अंसारी की जिम्मेदारी और अधिक बढ़ जाती है कि वे समाज में सौहार्द और शांति बनाए रखें। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि भाषण की स्वतंत्रता का यह अर्थ नहीं है कि कोई व्यक्ति समाज के किसी वर्ग के विरुद्ध भड़काऊ भाषा का प्रयोग करे।
कोर्ट ने यह भी कहा कि हेट स्पीच न केवल लोकतंत्र की भावना को कमजोर करता है, बल्कि सामाजिक समरसता को भी नुकसान पहुंचाता है। इसलिए इस प्रकार के मामलों में सख्त कार्रवाई जरूरी है।
सियासी हलचल
Hate Speech Case: इस फैसले के बाद प्रदेश की राजनीति में हलचल मच गई है। सुभासपा प्रमुख ओमप्रकाश राजभर ने कहा कि यह एक साजिश का हिस्सा है और अब्बास अंसारी को फंसाया गया है। उन्होंने कहा कि वे इस फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील करेंगे।
वहीं, भाजपा और अन्य दलों ने अदालत के फैसले का स्वागत किया है और कहा कि कानून सबके लिए समान है। भाजपा प्रवक्ता ने कहा, “जनप्रतिनिधियों को अपने शब्दों के चयन में सावधानी बरतनी चाहिए। यदि वे ही भड़काऊ बयान देंगे, तो आम जनता से क्या उम्मीद की जा सकती है?”
जनता की प्रतिक्रिया
मऊ शहर के स्थानीय लोगों की प्रतिक्रिया मिली-जुली रही। कुछ लोगों ने कोर्ट के फैसले को न्यायोचित बताया, जबकि कुछ ने इसे राजनीतिक बदले की भावना से प्रेरित बताया। एक स्थानीय निवासी अजय श्रीवास्तव ने कहा, “ऐसे बयान देने वालों पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए ताकि भविष्य में कोई भी नेता इस तरह की बयानबाजी करने से पहले सौ बार सोचे।”
Hate Speech Case: वहीं, एक अन्य नागरिक नदीम खान का कहना है, “अब्बास साहब ने कुछ गलत नहीं कहा था। उन्हें निशाना बनाया जा रहा है क्योंकि वो एक प्रभावशाली मुस्लिम नेता हैं।”
अब्बास अंसारी और उनके परिवार के सदस्यों पर सजा की घोषणा ने साफ कर दिया है कि हेट स्पीच के मामलों को अब गंभीरता से लिया जा रहा है। चाहे नेता कोई भी हो, कानून के दायरे से बाहर नहीं है। यह फैसला आने वाले समय में नेताओं के भाषणों पर असर डालेगा और शायद चुनावी रैलियों में ज़िम्मेदार शब्दों का इस्तेमाल बढ़ेगा।
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