महाकुंभ मेला 2025 में समाजवादी पार्टी के संस्थापक और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की प्रतिमा स्थापित करने के प्रस्ताव पर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है।
प्रयागराज में होने वाले महाकुंभ मेला 2025 में समाजवादी पार्टी के संस्थापक और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की प्रतिमा स्थापित करने के प्रस्ताव पर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। इस मुद्दे को लेकर धार्मिक और राजनीतिक हलकों में तीखी प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं।
विवाद की शुरुआत
महाकुंभ मेले में मुलायम सिंह यादव की प्रतिमा स्थापित करने का प्रस्ताव आने के बाद, अयोध्या के हनुमानगढ़ी के महंत राजूदास ने इस पर आपत्ति जताई। राजूदास ने अपनी प्रतिक्रिया में विवादास्पद और आपत्तिजनक टिप्पणी की, जिसमें उन्होंने मुलायम सिंह पर 1990 में अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चलवाने का आदेश देने को लेकर सवाल उठाया। महंत ने कहा कि महाकुंभ जैसे धार्मिक आयोजन में मुलायम सिंह की प्रतिमा लगाना उचित नहीं है, क्योंकि उनका इतिहास हिंदू समाज के अनुकूल नहीं रहा है।
सपा कार्यकर्ताओं की प्रतिक्रिया
महंत राजूदास की इस टिप्पणी के बाद समाजवादी पार्टी (सपा) के नेताओं और कार्यकर्ताओं में गुस्सा है। सपा ने इसे मुलायम सिंह यादव की छवि और उनकी राजनीतिक विरासत का अपमान बताया। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने राजूदास के बयान की कड़ी निंदा की और इसे समाज में नफरत फैलाने वाला करार दिया।
सपा कार्यकर्ताओं ने विरोध प्रदर्शन किया और राजूदास से माफी मांगने की मांग की। कुछ स्थानों पर सपा कार्यकर्ताओं ने राजूदास के पुतले भी फूंके। सपा ने कहा कि मुलायम सिंह यादव ने हमेशा समाज के सभी वर्गों के लिए काम किया और उनका योगदान अविस्मरणीय है।
धार्मिक और राजनीतिक विवाद
यह मामला अब केवल सपा और राजूदास के बीच विवाद तक सीमित नहीं है, बल्कि धार्मिक और राजनीतिक बहस का मुद्दा बन गया है। महाकुंभ मेला एक धार्मिक आयोजन है, और इसमें किसी राजनीतिक व्यक्ति की प्रतिमा स्थापित करने के विचार पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। कई धार्मिक संगठनों ने भी इस पर आपत्ति जताई है।
आगे की संभावनाएं
- सपा कार्यकर्ता महंत राजूदास के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की मांग कर सकते हैं।
- प्रशासन और महाकुंभ आयोजन समिति को इस विवाद पर स्पष्टीकरण देना पड़ सकता है।
- राजनीतिक दलों के बीच इस मुद्दे पर बयानबाजी और तेज हो सकती है।
निष्कर्ष
महाकुंभ जैसे बड़े धार्मिक आयोजन में राजनीतिक विवादों का घुसपैठ समाज में विभाजनकारी स्थिति पैदा कर सकता है। इस मुद्दे पर धार्मिक संगठनों, राजनीतिक दलों और आम जनता के बीच संतुलन बनाना प्रशासन के लिए चुनौती बन सकता है।
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