महाराष्ट्र में अंबेडकरवादियों ने RSS पर प्रतिबंध और Save Constitution अभियान के जरिए संविधान बचाने की आवाज़ उठाई। यह आंदोलन समानता, न्याय और लोकतंत्र की नई उम्मीद लेकर आया है।
महाराष्ट्र। आज एक बार फिर डॉ. भीमराव अंबेडकर के अनुयायियों ने संविधान की रक्षा के लिए सड़कों पर उतरकर इतिहास दोहरा दिया।
देशभर में बढ़ती असहिष्णुता और विभाजन की राजनीति के बीच अंबेडकरवादियों (Ambedkarites) ने एक ही नारा बुलंद किया “Save Constitution”।
इस आंदोलन के केंद्र में RSS पर प्रतिबंध लगाने की मांग रही, जिसे लोगों ने संविधान बचाने की दिशा में जरूरी कदम बताया।
लोगों का कहना है, कि यह सिर्फ विरोध नहीं, बल्कि संविधान की आत्मा को बचाने की शपथ है।
महाराष्ट्र की गलियों से लेकर सोशल मीडिया तक, हर जगह अब एक ही आवाज़ गूंज रही है, “Save Constitution, Save Humanity.”
डॉ. भीमराव अंबेडकर की सोच से प्रेरित आंदोलन

इस आंदोलन की प्रेरणा सीधे Dr. Babasaheb Ambedkar की शिक्षाओं से ली गई है।
Ambedkarites ने कहा कि अगर हम वास्तव में लोकतंत्र को जिंदा रखना चाहते हैं, तो सबसे पहले हमें “Save Constitution” को अपने जीवन का हिस्सा बनाना होगा।
“हमारा संविधान केवल शासन की किताब नहीं, बल्कि यह सामाजिक क्रांति का दस्तावेज़ है।” डॉ. भीमराव अंबेडकर
भीड़ में कई लोगों के हाथों में तख्तियाँ थीं “RSS Ban Now”, “Save Constitution, Save India” और “Equality for All”।
लोगों का कहना है,कि संविधान कमजोर हुआ तो न सिर्फ न्याय, बल्कि हर नागरिक का भविष्य खतरे में पड़ जाएगा।
इसलिए “Save Constitution” अब केवल नारा नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय जिम्मेदारी बन गया है।
RSS पर प्रतिबंध की मांग और जनता का गुस्सा
अंबेडकरवादियों ने अपने प्रदर्शन में RSS पर प्रतिबंध की मांग करते हुए कहा कि जब तक संविधान की मूल भावना को कमजोर करने वाली विचारधाराएँ सक्रिय रहेंगी, तब तक “Save Constitution” अधूरा रहेगा।
उनका आरोप है, कि RSS का एजेंडा संविधान के धर्मनिरपेक्ष और समानता आधारित स्वरूप के विपरीत है।
लोगों ने कहा कि “Save Constitution” का अर्थ सिर्फ किताब को बचाना नहीं, बल्कि उसकी आत्मा न्याय, समानता और बंधुता को जिंदा रखना है।
कई संगठनों ने इस मांग का समर्थन किया है, और इसे Save Constitution Campaign का अहम हिस्सा बताया।
सोशल मीडिया पर भी यह मुद्दा ट्रेंड कर रहा है, जहाँ लोग लिख रहे हैं।
“Ban RSS to Save Constitution”
“Save Constitution, Save Democracy”
यह स्पष्ट संदेश है कि जनता अब खामोश नहीं बैठने वाली।

संविधान की रक्षा: लोकतंत्र की सबसे बड़ी परीक्षा
“Save Constitution” आंदोलन ने यह साबित कर दिया कि जब भी लोकतंत्र खतरे में आता है, जनता खुद आगे बढ़ती है।
महाराष्ट्र से शुरू हुआ यह संघर्ष अब राष्ट्रीय स्वरूप ले रहा है।
अंबेडकरवादियों ने साफ कहा कि संविधान को बचाना ही असली देशभक्ति है।
उनका कहना है,कि यह आंदोलन किसी व्यक्ति या संगठन के खिलाफ नहीं, बल्कि नफरत, असमानता और अन्याय के खिलाफ है।
हर नागरिक को अब यह समझना होगा कि “Save Constitution” “Save India.”
यह जनआंदोलन लोगों को जागरूक कर रहा है,कि संविधान की सुरक्षा केवल सरकार की नहीं, बल्कि हर नागरिक की जिम्मेदारी है।
इसलिए यह संघर्ष लगातार जारी रहेगा जब तक संविधान की आत्मा पूरी तरह सुरक्षित नहीं हो जाती।
समानता और इंसाफ की राह पर अंबेडकरवादी
डॉ. अंबेडकर के अनुयायी आज भी उनके दिखाए रास्ते पर चल रहे हैं।
वे मानते हैं कि “Save Constitution” केवल एक अभियान नहीं, बल्कि यह सामाजिक न्याय की नींव है।
उनका संदेश साफ है, अगर संविधान बचा रहेगा, तो भारत भी बचा रहेगा।
अंबेडकरवादियों ने यह भी कहा कि जब तक समाज में भेदभाव और नफरत खत्म नहीं होगी, तब तक “Save Constitution” की आवश्यकता बनी रहेगी।
यह आंदोलन आने वाली पीढ़ियों को यह सिखा रहा है कि सच्चा लोकतंत्र केवल किताबों में नहीं, बल्कि हर नागरिक के व्यवहार में बसता है।
Save Constitution भारत की आत्मा की रक्षा
भारत में आज जो सबसे बड़ी ज़रूरत है, वह है Save Constitution की भावना को फिर से जीवित करना।
RSS पर प्रतिबंध की मांग और संविधान की रक्षा का यह अभियान लोकतंत्र के भविष्य की दिशा तय करेगा।
अंबेडकरवादियों का यह संदेश आने वाली पीढ़ियों के लिए चेतावनी भी है और प्रेरणा भी
कि जब भी संविधान खतरे में होगा, भारत की जनता उसे बचाने के लिए उठ खड़ी होगी।
Save Constitution अब केवल आंदोलन नहीं रहा, बल्कि यह भारत की आत्मा की आवाज़ बन चुका है।
डिस्क्लेमर: यह लेख सार्वजनिक जानकारी, मीडिया रिपोर्ट्स और सोशल मीडिया स्रोतों पर आधारित है।
इसका उद्देश्य जागरूकता फैलाना है, न कि किसी व्यक्ति या संगठन की छवि को नुकसान पहुँचाना।
यदि आगे कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया या अपडेट आती है, तो लेख को उसी अनुसार संशोधित किया जाएगा।

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