Punyashlok Ahilyabai Holkar – A Theatrical Tribute to the Saint-Queen of Malwa” पुण्यश्लोक अहिल्याबाई होलकर नाटक का मंचन
Punyashlok Ahilyabai Holkar – A Theatrical Tribute to the Saint-Queen of Malwa भारतेंदु नाट्य अकादमी लखनऊ (संस्कृति विभाग उत्तरप्रदेश शासन) के तत्वाधान में गोरखपुर थियेटर असोसिएशन गोरखपुर एवं रैम्पस स्कूल गोरखपुर के सहयोग से दर्पण गोरखपुर द्वारा आयोजित प्रस्तुति परक नाट्य कार्यशाला के अंतर्गत तैयार ,संदीप लेले द्वारा लिखित एवं रीना जायसवाल द्वारा निर्देशित नाटक पुण्यश्लोक अहिल्या बाई होलकर नाटक की प्रस्तुति राप्तीनगर स्थित रैम्पस स्कूल के रतन मंच पर किया गया।
Punyashlok Ahilyabai Holkar स्वागत
संस्था के अध्यक्ष श्री रविशंकर खरे ने मुख्य अतिथि प्रोफेसर पूनम टण्डन (कुलपति दी द उ गोरखपुर विश्वविद्यालय गोरखपुर), कार्यक्रम अध्यक्ष डॉ मंगलेश श्रीवास्तव (महापौर गोरखपुर), मुख्य वक्ता डॉ ईश्वर शरण विश्वकर्मा (पूर्व अध्यक्ष उत्तर प्रदेश उच्चतर शिक्षा आयोग), विशिष्ट अतिथि श्रीमती अंजू चौधरी, पूर्व अध्यक्ष महिला आयोग, पुष्पदंत जैन को पुष्प गुच्छ देकर सम्मानित किया।
मुख्य अतिथि उद्बोधन/उपस्थिति
प्रोफेसर पूनम टण्डन ने सभा को सम्बोधन में आयोजक मंडल को बधाई देते हुए कहा कि यह हर्ष और गर्व की बात है कि आज के नाटक में निर्देशक से लेकर संचालक महिला है जो गोरखपुर द्वारा पूरे समाज हेतु महिला शसक्तीकरण का एक शसक्त उदाहरण है।आज की नई पीढ़ी कला के साथ जुड़ रही है जो बहुत ही सुंदर भविष्य का संकेत है। नाटक का कलाकार होना बहुत ही बड़ी बात है,अलग अलग भवनाओं से खुद को जोड़ना यह नाटक में सम्भव है।

Punyashlok Ahilyabai Holkar मंच पर आया प्रसिद्ध अहिल्या बाई होल्कर का जीवन:
राजमाता अहिल्याबाई होलकर, मालवा साम्राज्य की रानी थीं । उन्हें भारत की सबसे दूरदर्शी महिला शासकों में से एक माना जाता है। Ahilyabai Holkar 18वीं शताब्दी में, मालवा की महारानी के रूप में, धर्म का संदेश फैलाने में और औद्योगीकरण के प्रचार-प्रसार में उनके महत्वपूर्ण योगदान तथा व्यापक रूप से उनकी बुद्धिमत्ता, साहस और प्रशासनिक कौशल की दक्षता इस नाटक ने रूबरू करवाया।
Ahilyabai Holkar ‘पुण्यशलोका अहिल्या इंदौर की प्रसिद्ध अहिल्या बाई होल्कर की कहानी है। जो एक छोटे से गांव से निकलकर प्रजावत्सल, न्यायदानी, रणनीति निपुण, बहादुर, सादगी की प्रतिमूर्ति और मालवा प्रांत की कर्ता धर्ता बनी। नाटक में दिखाया कि अहिल्या बाई का जीवन बहुत संघर्षपूर्ण रहा। अपने जीवन में उन्होंने अपने पति, अपने पुत्र और अपने दोहित्र को युवावस्था में कालकवलित होते देखा। आसपास के महत्वाकांक्षियों में वर्चस्व की लड़ाई देखी। अंग्रेजों को अपना खूनी पंजा फैलाते देखा। इस सबके बाद भी उन्होंने कभी पुणे की पेशवाई, अपनी प्रजा और सनातन धर्म के प्रति अपनी निष्ठा में कोई कमी नहीं आने दी।
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नाटक में दिखाया कि अहिल्या बाई का जीवन बहुत संघर्षपूर्ण रहा। उन्होंने अपनी निजी संपत्ति का प्रयोग कर 300 से अधिक मंदिरों, धर्मशालाओं, कुओं और बावड़ियों के निर्माण का कार्य कराया। उन्होंने अन्नक्षेत्रों(भंडारों) की व्यवस्था भी की जिसका संचालन उनके बाद भी होता रहा।
गीत-संगीत, नृत्य एवं उत्तम अभिनय से सजे इस नाटक में शीतल साहनी (अहिल्या), आकृति चतुर्वेदी ( बाल अहिल्या), शरद श्रीवास्तव, शिवा, रीना जायसवाल, उपहार मिश्रा, अमित पटेल, नम्दा चौधरी, रविन्द्र रँगधर, मोनी साहनी, प्रियांशू, पंकज, सीमा, वर्षा चतुर्वेदी, वनीत जायसवाल, संजय सोमी, उत्तम, श्रेयांश, अदिति, आराध्या सहित इन कलाकारों ने इसको जीवंत कर दिया।
नाटक का निर्देशन रीना जायसवाल ने किया, सह निर्देशन शरद श्रीवास्तव, प्रस्तुति नियंत्रण रविन्द्र रँगधर ने किया।
प्रस्तुतकर्ता -श्री रविशंकर खरे (अध्यक्ष दर्पण गोरखपुर)।
निवेदक- दीप शर्मा।
कार्यक्रम संचालन-श्रीमती रीता श्रीवास्तव
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