Uttarakhand youth employment उत्तराखंड की नई सोच: अब नहीं चलेगा जाति और धर्म का खेल युवा मांग रहे रोजगार और भविष्य की गारंटी
Uttarakhand youth employment उत्तराखंड के युवाओं ने अब जाति और धर्म की राजनीति को नकार दिया है। इस बार मुद्दा होगा रोजगार, शिक्षा और विकास। पहाड़ों से उठ रही आवाज सरकार से भविष्य और काम का हिसाब मांग रही है।
परिचय
उत्तराखंड की पवित्र वादियाँ हमेशा से अपनी प्राकृतिक सुंदरता, आस्था और साहसिक परंपराओं के लिए जानी जाती रही हैं। लेकिन अब इन पहाड़ों में एक नई गूंज सुनाई दे रही है। यह गूंज किसी धार्मिक आयोजन या जातिगत नारों की नहीं, बल्कि युवाओं की आवाज़ है। अब सवाल मंदिर-मस्जिद का नहीं बल्कि रोज़गार और भविष्य का है।
उत्तराखंड का युवा साफ कह चुका है,जाति और धर्म की राजनीति बहुत हो चुकी, अब सरकार को अपने काम का हिसाब देना होगा।”
युवा जागरूक हो रहे हैं
Uttarakhand youth employment बीते वर्षों में जिस तरह राजनीतिक दलों ने समाज को जाति और धर्म के नाम पर बांटने की कोशिश की, उससे आम जनता, खासकर युवा वर्ग निराश हुआ। शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी जब उन्हें रोजगार के अवसर नहीं मिलते, तो उनका गुस्सा और हताशा स्वाभाविक है।
अब युवा पूछ रहा है।
हमारी पढ़ाई का क्या फायदा अगर हमें नौकरी ही न मिले
पहाड़ों से हो रहा पलायन कब रुकेगा?
गांवों में रोजगार और उद्योग क्यों नहीं लाए जाते?
मुद्दों की राजनीति बनाम धार्मिक नारों की राजनीति
अभी तक कई बार चुनावों में धार्मिक नारों को हवा देकर वोट बटोरे गए। लेकिन अब तस्वीर बदल रही है। लोग समझ चुके हैं कि धार्मिक उकसावे से उनका पेट नहीं भर सकता और न ही उनके बच्चों का भविष्य सुरक्षित हो सकता है।
इस बार युवा स्पष्ट संदेश दे रहे हैं कि चुनाव रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य और विकास के मुद्दों पर होगा।
Uttarakhand youth employment रोजगार की सबसे बड़ी चुनौती
उत्तराखंड का सबसे बड़ा दर्द है,रोजगार का अभाव।
पहाड़ी क्षेत्रों से हर साल हजारों लोग रोज़गार की तलाश में मैदानी इलाकों और महानगरों की ओर पलायन करते हैं।
सरकारी नौकरियों की कमी और निजी क्षेत्र में अवसर न होना, दोनों मिलकर युवाओं को मजबूर कर रहे हैं।
खेती और पर्यटन जैसे क्षेत्रों में असीम संभावनाएं हैं, लेकिन योजनाओं के धरातल पर न उतरने से लाभ नहीं मिल पा रहा।
युवा पूछ रहे हैं,“कब तक हमें बाहर जाकर दूसरों के शहरों में मजदूरी करनी पड़ेगी? क्या अपने ही राज्य में हमें रोजगार नहीं मिल सकता?”
Uttarakhand youth employment शिक्षा बनाम अवसर
उत्तराखंड में शिक्षा का स्तर लगातार बेहतर हो रहा है। हजारों युवा उच्च शिक्षा और प्रोफेशनल कोर्स कर रहे हैं, लेकिन समस्या यह है, कि उन्हें अपने राज्य में अवसर नहीं मिलते।
युवाओं का कहना है,
“हमने पढ़ाई की, लेकिन नौकरियां नहीं मिलीं।”
“सरकारी भर्तियाँ सालों तक लंबित रहती हैं।”
“प्राइवेट सेक्टर के लिए राज्य में माहौल ही नहीं है।”
यानी शिक्षा और रोज़गार के बीच की खाई लगातार चौड़ी होती जा रही है।
Uttarakhand youth employment पलायन की त्रासदी
पलायन उत्तराखंड की सबसे बड़ी सामाजिक समस्या है। खाली हो रहे गांव न सिर्फ राज्य के सांस्कृतिक ढांचे को कमजोर कर रहे हैं, बल्कि इससे सुरक्षा की चुनौतियाँ भी बढ़ रही हैं।
जहां कभी रौनक थी, वहां अब वीरानी है।
बूढ़े माता-पिता गांव में अकेले रह जाते हैं, और युवा रोजगार की तलाश में बाहर भटकते हैं।
युवाओं का सवाल है क्या सरकार हमें अपने गांवों में जीने और कमाने का अधिकार नहीं दिला सकती
Uttarakhand youth employment सरकार से सीधा सवाल
आज उत्तराखंड का युवा नेताओं से सीधा सवाल पूछ रहा है,
आपने जो वादे किए थे, उनका क्या हुआ?
रोजगार देने की योजनाएं सिर्फ कागजों तक क्यों सीमित रहीं?
खाली पदों पर भर्ती क्यों नहीं हो रही?
उद्योग और निवेशक राज्य में क्यों नहीं आ रहे?
Uttarakhand youth employment अबकी बार मुद्दों पर होगी लड़ाई

अबकी बार चुनाव में न मंदिर-मस्जिद का शोर काम आएगा और न ही जातिगत गणित।
युवा वर्ग खुलकर कह रहा है,
“हमारी प्राथमिकता रोजगार है।”
“हम शिक्षा, स्वास्थ्य और विकास को मुद्दा बनाएंगे।”
“धर्म बेचने वाले नेताओं की हार तय है।”
Uttarakhand youth employment पहाड़ की गूंज: बदलाव का समय
उत्तराखंड के पहाड़ों से उठ रही आवाज अब पूरे देश में गूंज रही है। यह आवाज है,
मेहनतकश युवाओं की,
अपने हक की लड़ाई लड़ने वाले छात्रों की,
पलायन से टूटे परिवारों की,
और एक बेहतर भविष्य का सपना देखने वाले हर नागरिक की।
यह गूंज साफ कहती है,कि अब जनता सिर्फ नारों से संतुष्ट नहीं होगी।
निष्कर्ष
उत्तराखंड का भविष्य उसके युवाओं के हाथ में है, और यह युवा अब बहुत जागरूक हो चुका है। यह तय है, कि आने वाले दिनों में राज्य की राजनीति जाति और धर्म की जगह असली मुद्दों पर केंद्रित होगी।
सरकार को अब रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य और विकास का ठोस खाका पेश करना ही होगा। वरना जनता हिसाब मांगने से पीछे नहीं हटेगी।
डिस्क्लेमर
इस लेख का उद्देश्य केवल सामाजिक और राजनीतिक परिस्थितियों का विश्लेषण करना है। इसमें प्रस्तुत विचार किसी विशेष दल, व्यक्ति या विचारधारा के पक्ष या विरोध में नहीं हैं। लेख पूरी तरह स्वतंत्र और सार्वजनिक जानकारी पर आधारित है।
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