TET compulsion teacher suicide एक शिक्षक की मौन चीख: टीईटी के बोझ तले दम तोड़ गया मनोज
TET compulsion teacher suicide महोबा के प्रेमनगर में प्रधानाध्यापक मनोज कुमार साहू ने टीईटी की अनिवार्यता से परेशान होकर आत्महत्या कर ली। तीन दशक की सेवा के बाद भी शिक्षा व्यवस्था ने उन्हें अयोग्य ठहराया। इस दर्दनाक घटना ने शिक्षकों, परिवार और समाज को झकझोर दिया है।
महोबा,उत्तर प्रदेश सुबह का समय था। लोग अपने-अपने दिन की शुरुआत कर रहे थे। लेकिन उसी सुबह महोबा जिले के प्रेमनगर से ऐसी खबर आई जिसने हर किसी को भीतर तक हिला दिया। 49 वर्षीय शिक्षक मनोज कुमार साहू ने अपने ही घर में फंदा लगाकर जिंदगी खत्म कर ली।
यह मौत सामान्य नहीं थी, यह एक सवाल बनकर खड़ी है—क्या अनुभव और सेवा का मूल्य अब सिर्फ एक कागज की परीक्षा से तय होगा?
“TET compulsion teacher suicide” तीन दशक की सेवा, और फिर भी “अयोग्य”

मनोज कुमार साहू को 1992-93 में पिता की मृत्यु के बाद अनुकंपा आधार पर नौकरी मिली थी। तीन दशकों से ज्यादा समय तक वे बच्चों के भविष्य को संवारते रहे। वे बीटीसी और इंटर पास थे। लेकिन सरकार की नई व्यवस्था में टीईटी परीक्षा पास करना अनिवार्य कर दिया गया।
मनोज अक्सर कहते थे
“क्या हम तीन दशक बाद भी खुद को साबित करने की हालत में हैं? क्या बच्चों को पढ़ाने की हमारी मेहनत एक कागज से छोटी है?”
यह दर्द मनोज के दिल में गहराई तक उतर गया और आखिरकार उन्होंने अपनी जान दे दी।
TET compulsion teacher suicide सुबह का वह काला सन्नाटा
“TET compulsion teacher suicide” सोमवार की सुबह मनोज ने पत्नी चंद्रवती से कहा कि वे टहलने जा रहे हैं। लेकिन कुछ देर बाद वे घर की दूसरी मंजिल पर गए और दरवाजा बंद कर लिया।
जब देर तक नीचे नहीं आए, तो परिवार ने आवाज लगाई। कोई जवाब नहीं मिला। दरवाजा तोड़ा गया तो सामने का दृश्य दिल दहला देने वाला था
मनोज पंखे से लटके हुए थे।
“TET compulsion teacher suicide” पत्नी चीख पड़ीं। बच्चों की आंखें रोते-रोते लाल हो गईं। परिवार ने उन्हें जिला अस्पताल पहुंचाया, लेकिन डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया।
परिवार का दर्द: “सरकार ने मेरा घर उजाड़ दिया”
पत्नी चंद्रवती बार-बार बेसुध होकर कहती रहीं
“जिन्होंने अपना जीवन बच्चों की पढ़ाई में झोंक दिया, आज वही मेरे बच्चों को रोता छोड़कर चले गए। सरकार ने मेरे घर का सहारा छीन लिया।”
मनोज के चचेरे भाई नरेंद्र कुमार का कहना था—
“भैया हर रोज कहते थे कि नौकरी पर तलवार लटक रही है। आखिरकार वही डर उन्हें खत्म कर गया।”
शिक्षकों का गुस्सा और सवाल
“TET compulsion teacher suicide” घटना की खबर पूरे जिले में आग की तरह फैल गई। गांधी नगर स्थित शिक्षक कॉलोनी में गुस्से की लहर दौड़ गई। शिक्षक संगठनों ने साफ कहा
“यह आत्महत्या नहीं, सरकार की गलत नीतियों की हत्या है।”
एक वरिष्ठ शिक्षक ने गुस्से से कहा
“मनोज जैसे हजारों शिक्षक हर दिन डर के साए में जी रहे हैं। क्या 30 साल का अनुभव किसी एक परीक्षा से छोटा है? यह व्यवस्था हमें इंसान नहीं, मशीन समझ रही है।”
TET compulsion teacher suicide छात्रों की आंखें भीगीं
“TET compulsion teacher suicide” मनोज ने हजारों बच्चों को पढ़ाया। उनके पढ़ाए हुए छात्र आज अलग-अलग क्षेत्रों में कामयाब हैं। लेकिन अपने गुरु का यह दर्दनाक अंत सुनकर कई छात्र फूट-फूट कर रो पड़े।
एक पूर्व छात्र ने रोते हुए कहा
“गुरुजी ने हमें पढ़ाया ही नहीं, बल्कि इंसान बनना सिखाया। आज वही गुरुजी व्यवस्था की बेरहमी से हार गए।”
क्या अनुभव बेकार है?
मनोज की मौत ने शिक्षा व्यवस्था पर गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं। अगर एक शिक्षक 30 साल पढ़ाने के बाद भी अयोग्य है, तो फिर शिक्षा का असली पैमाना क्या है?
शिक्षक संगठनों का कहना है कि पुराने शिक्षकों के लिए छूट जरूरी है। अन्यथा, मनोज जैसी घटनाएं और बढ़ेंगी।
“TET compulsion teacher suicide” समाज और सरकार के लिए आईना
यह मौत सिर्फ एक परिवार का गम नहीं, बल्कि पूरे समाज का घाव है। यह घटना हमें सोचने पर मजबूर करती है,कि क्या हमारी नीतियां प्रेरणा देती हैं,या शिक्षकों को तोड़ रही हैं।
“TET compulsion teacher suicide” निष्कर्ष: मनोज की मौत एक चेतावनी
मनोज कुमार साहू अब इस दुनिया में नहीं हैं। लेकिन उनकी मौत एक खामोश चीख बनकर रह गई है। यह चीख कह रही है।
“हमें मत तौलो कागज की परीक्षा से। हमने अपना जीवन बच्चों के सपनों के लिए दिया है। हमें मत मारो इस बेगानी व्यवस्था से।”
जब तक सरकार और समाज इस आवाज को सुनकर बदलाव नहीं करते, तब तक न जाने कितने और मनोज अपनी जान गंवाते रहेंगे।
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