Teacher cleaning school campus झाड़ू उठाया शिक्षक ने, दिया स्वच्छ भारत को जीवन: सूर्यप्रकाश पाण्डेय का जमीनी योगदान

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Teacher cleaning school campus झाड़ू उठाया शिक्षक ने, दिया स्वच्छ भारत को जीवन: सूर्यप्रकाश पाण्डेय का जमीनी योगदान

Teacher cleaning school Campus कैंपस क्लासरूम के बाहर भी होता है असली पाठ – और वो पाठ होता है कर्तव्य का।

Teacher cleaning school campus  उत्तर प्रदेश के पीएम श्री कंपोजिट विद्यालय, उनवल प्रथम में एक असाधारण घटना ने सबका ध्यान खींचा। एक शिक्षक—सूर्यप्रकाश पाण्डेय—ने जब अपने हाथों में झाड़ू उठाया और स्कूल परिसर की सफाई में जुट गए, तब यह नज़ारा सिर्फ स्वच्छता का नहीं था, यह था एक नायक की चुपचाप क्रांति का।

जहाँ आज भी सरकारी स्कूलों को गंदगी, लापरवाही और सुविधाओं की कमी का प्रतीक माना जाता है, वहीं सूर्यप्रकाश पाण्डेय जैसे शिक्षक उस सोच को चकनाचूर करते हैं। उनकी यह पहल सिर्फ सफाई तक सीमित नहीं है; यह एक राष्ट्रीय आंदोलन—स्वच्छ भारत मिशन—को व्यक्तिगत जिम्मेदारी के स्तर पर अपनाने का जीवंत उदाहरण है।

Teacher cleaning school campus कौन हैं सूर्यप्रकाश पाण्डेय?

सूर्यप्रकाश पाण्डेय, पीएम श्री कंपोजिट विद्यालय उनवल प्रथम के एक समर्पित अध्यापक हैं। शिक्षा के साथ-साथ वे विद्यालय में अनुशासन, स्वच्छता और नैतिकता के पक्षधर हैं। उनके लिए पढ़ाना सिर्फ ब्लैकबोर्ड तक सीमित नहीं है; वे मानते हैं कि सच्ची शिक्षा का अर्थ है चरित्र निर्माण और सामाजिक ज़िम्मेदारी का निर्वहन।

विद्यालय में झाड़ू लगाने की प्रेरणा कहाँ से मिली?

जब उस इंसान से पूछा गया की विद्यालय में झाड़ू लगाने की सोच आपके अंदर आई कहां से तो बहुत ही सरल तरीके से उत्तर दिया

“मैं कैसे उम्मीद कर सकता हूं कि बच्चे सफाई करेंगे जब मैं खुद पीछे हट जाऊं? मैं जो सिखाना चाहता हूं, उसे खुद जीना चाहता हूं।”

Teacher cleaning school campus  यह वाक्य एक शिक्षक की वास्तविक प्रतिबद्धता को दर्शाता है। यह न सिर्फ शिक्षा नीति के सिद्धांतों से मेल खाता है बल्कि “बाई एक्ज़ाम्पल” (By Example) शिक्षा देने का बेहतरीन उदाहरण भी है।

सकारात्मक संदेश: शिक्षा + स्वच्छता = संस्कार

आज शिक्षा सिर्फ किताबी ज्ञान तक सीमित नहीं रही। अब ज़रूरत है कि छात्रों को सामाजिक दायित्वों के प्रति भी जागरूक किया जाए। पाण्डेय जी ने यह दिखा दिया कि

Teacher cleaning school campus झाड़ू लगाना छोटा काम नहीं, यह राष्ट्र निर्माण की नींव है।

उनका यह कार्य स्कूल के बच्चों, अभिभावकों और समुदाय को एक शक्तिशाली संदेश देता है – कि शिक्षक सिर्फ ज्ञान नहीं, आचरण भी सिखाते हैं।

जब शिक्षक सफाई करें तो प्रशासन पर सवाल क्यों न उठें?

हालाँकि पाण्डेय जी की पहल प्रेरणादायक है, लेकिन यह भी एक बड़ा सवाल खड़ा करती है—

क्या शिक्षक को झाड़ू लगानी चाहिए या यह सफाई कर्मचारियों की ज़िम्मेदारी है?

Teacher cleaning school campus  यह दृश्य कहीं न कहीं शिक्षा विभाग की ढिलाई और सिस्टम की असफलता को भी उजागर करता है। जब एक शिक्षक को खुद झाड़ू उठानी पड़े तो यह दर्शाता है,कि सफाई के लिए समुचित संसाधन और स्टाफ की व्यवस्था नहीं हो रही है।

लेकिन यही वह बिंदु है जहाँ एक नायक उभरता है, क्योंकि वह हालातों से लड़ता नहीं, उन्हें बदलने की पहल करता है।

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जब छात्र अपने अध्यापक को स्कूल की ज़मीन पर झुककर झाड़ू लगाते देखते हैं, तब उन्हें सिर्फ सफाई नहीं दिखाई देती—उन्हें सम्मान, ज़िम्मेदारी और ईमानदारी की सच्ची तस्वीर दिखती है।

यह उदाहरण उन अभिभावकों को भी सोचने पर मजबूर करता है जो अक्सर शिक्षकों को कम आंकते हैं।

सामाजिक मीडिया पर चर्चा का विषय

पाण्डेय जी की इस पहल को सोशल मीडिया पर भी सराहा जा रहा है। फेसबुक, ट्विटर और व्हाट्सएप ग्रुपों में उनकी तस्वीरें वायरल हो रही हैं, जिनमें वे विद्यालय की सफाई कर रहे हैं। बहुत से लोगों ने यह तक लिखा:

“अगर हर सरकारी स्कूल में ऐसे अध्यापक हों, तो भारत को सुपरपावर बनने से कोई नहीं रोक सकता।”

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सरकार की स्वच्छ भारत योजना तब ही सफल होगी जब यह आंदोलन जन-जन तक पहुंचेगा। पाण्डेय जी की यह पहल दर्शाती है कि सरकारी नीतियाँ सिर्फ सरकारी दस्तावेजों तक सीमित नहीं रहनी चाहिए, बल्कि हर आम आदमी को “अपनी ज़िम्मेदारी खुद निभानी होगी।”

वे सिर्फ एक अध्यापक नहीं हैं, वे हैं एक सामाजिक परिवर्तन के वाहक।

स्कूल प्रबंधन और अधिकारियों की भूमिका

अब ज़रूरत है,कि स्थानीय प्रशासन, जिला शिक्षा अधिकारी, और पंचायत अधिकारी इस घटना को सिर्फ तारीफ तक सीमित न रखें, बल्कि इसे एक मॉडल बनाकर सभी स्कूलों में लागू करें। यदि एक शिक्षक सफाई कर सकता है, तो अधिकारी स्कूल के संसाधनों की निगरानी क्यों नहीं कर सकते?

सिस्टम को सुधारना होगा, ताकि पाण्डेय जी जैसे शिक्षकों को सफाई करने की ज़रूरत न पड़े—बल्कि वे केवल मार्गदर्शन करें और बच्चे उसे अमल में लाएं।

क्या सीखा जा सकता है इस पहल से?

1. कर्म ही पूजा है — चाहे वो शिक्षण हो या सफाई।

2. शब्दों से बड़ा होता है आचरण।

3. हर काम बड़ा होता है, अगर नीयत नेक हो।

4. प्रेरणा देने के लिए बड़े ओहदे की ज़रूरत नहीं होती, बस बड़ा दिल चाहिए।

समाज का उत्तरदायित्व

अब समय है कि हम इस पहल से प्रेरणा लें और अपने आस-पास के विद्यालयों, सरकारी संस्थानों और सार्वजनिक स्थानों की सफाई को लेकर खुद आगे आएं। बच्चों को शिक्षा देना ज़रूरी है, लेकिन उन्हें जीने का तरीका सिखाना उससे भी ज़्यादा ज़रूरी है

अंत में – झाड़ू का संदेश

“जब एक शिक्षक झाड़ू उठाता है, तब वो समाज को सिर्फ सफाई नहीं सिखाता, बल्कि स्वाभिमान, सेवा और सच्चाई का पाठ पढ़ाता है।”

Teacher cleaning school campus सूर्यप्रकाश पाण्डेय जैसे शिक्षक भारतीय शिक्षा व्यवस्था की रूह हैं। वे दिखा रहे हैं, कि अगर नीयत साफ हो तो हाथ गंदे करने में भी गर्व महसूस होता है।

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