Shikshamitra salary hike demand in UP शिक्षामित्रों ने 6 सूत्रीय मांगों को लेकर डीएम को सौंपा ज्ञापन, कहा 2017 से स्थिर मानदेय में टूट रहे हैं सपने
Shikshamitra salary hike demand in Upगोरखपुर। जब पूरा देश शिक्षक दिवस पर गुरुजनों का सम्मान कर रहा था, तब गोरखपुर के शिक्षामित्रों ने काली पट्टी बांधकर अपनी पीड़ा जताई। जिला अध्यक्ष राम नगीना निषाद के नेतृत्व में दर्जनों शिक्षामित्रों ने जिलाधिकारी कार्यालय पहुंचकर मुख्यमंत्री को संबोधित 6 सूत्रीय ज्ञापन सौंपा।
शिक्षामित्रों की आंखों में आंसू और चेहरे पर बेबसी साफ झलक रही थी। उनका कहना था कि अगर अब भी उनकी आवाज़ अनसुनी की गई, तो आने वाली पीढ़ी शिक्षा व्यवस्था पर विश्वास खो देगी।
25 वर्षों की सेवा, पर सम्मान अब भी अधूरा
शिक्षामित्रों ने बताया कि वे दो दशक से भी अधिक समय से बच्चों को शिक्षा की रोशनी दे रहे हैं। इनमें से कई स्नातक व बीटीसी पास हैं, लेकिन आज भी उन्हें 2017 से मात्र 10,000 रुपये (11 माह) मानदेय मिल रहा है।
महंगाई के इस दौर में यह रकम इतनी नगण्य है,कि रोटी, दवा और बच्चों की पढ़ाई तक पूरी नहीं हो पा रही। कई शिक्षामित्रों ने आर्थिक संकट से तंग आकर अपनी जान तक दे दी।
उनकी आवाज़ थरथराती हुई थी—”हम दूसरों के बच्चों का भविष्य गढ़ते हैं, लेकिन हमारे अपने बच्चों का भविष्य अंधेरे में है।”
अधूरा रह गया शासन का वादा Shikshamitra salary hike demand in UP
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14 नवंबर 2023 को शासन स्तर पर कमेटी बनी थी। उस कमेटी ने शिक्षामित्रों के पक्ष में प्रस्ताव भेजा, लेकिन आचार संहिता के कारण फाइलें थम गईं। शिक्षामित्रों का कहना है, कि चुनाव बीत चुका है, अब सरकार को वादा निभाना चाहिए।
शिक्षामित्रों की 6 सूत्रीय मांगें Shikshamitra salary hike demand in UP
ज्ञापन में शिक्षामित्रों ने अपनी हक की आवाज़ इन 6 बिंदुओं में रखी—
1. मानदेय वृद्धि: राजस्थान, उत्तराखंड, हरियाणा और बिहार की तरह मानदेय बढ़ाया जाए।
2. पुनः समायोजन: मूल विद्यालय से वंचित शिक्षामित्रों को उनके गांव या नजदीकी विद्यालय में समायोजित किया जाए।
3. महिला शिक्षामित्रों का स्थानांतरण: विवाहोपरांत महिला शिक्षामित्रों को ससुराल जनपद में समायोजित करने की सुविधा मिले।
4. भविष्य निधि (EPF): शिक्षामित्रों को भविष्य निधि योजना से जोड़ा जाए।
5. स्वास्थ्य सुविधा: आयुष्मान योजना के तहत मुफ्त मेडिकल सुविधा दी जाए।
6. आर्थिक सहारा: मृतक शिक्षामित्रों के परिवार को आर्थिक सहायता व नौकरी में एक सदस्य को समायोजित किया जाए।
पीड़ा का स्वर और आंसुओं का सैलाब
ज्ञापन सौंपते समय कई महिला शिक्षामित्र रो पड़ीं। उनका कहना था कि वे बच्चों को शिक्षा का महत्व तो समझाती हैं, लेकिन अपने ही बच्चों की फीस चुकाने में असमर्थ हैं।
एक वृद्ध शिक्षामित्र ने कहा “25 साल से बच्चों को पढ़ा रहा हूँ, लेकिन आज भी मेरे घर की हालत मजदूर से बदतर है। सरकार कब तक हमें सिर्फ वोट बैंक समझती रहेगी?”
संघर्ष का संकल्प Shikshamitra salary hike demand in UP
जिला वरिष्ठ उपाध्यक्ष अविनाश कुमार, मंत्री राजनाथ यादव, प्रवक्ता अशोक चंद्रा, कोषाध्यक्ष राकेश कुमार समेत दर्जनों शिक्षामित्रों ने एक स्वर में चेतावनी दी “अगर हमारी मांगें पूरी नहीं हुईं तो हम परिवार समेत सड़क पर उतरने को मजबूर होंगे।”
निष्कर्ष Shikshamitra salary hike demand in UP
गोरखपुर का यह ज्ञापन केवल एक मांग पत्र नहीं, बल्कि उन हजारों शिक्षामित्रों की करुण पुकार है, जो शिक्षा की मशाल थामे खुद अंधेरे में जी रहे हैं। उनकी आंखों के आंसू और टूटते सपने इस बात का प्रमाण हैं,कि अब इंतज़ार की सीमा पार हो चुकी है। सरकार के लिए यह समय केवल सुनने का नहीं, बल्कि ठोस कदम उठाने का है।
शिक्षामित्रों का संघर्ष आज सिर्फ नौकरी या वेतन का सवाल नहीं रह गया है, बल्कि यह उनके सम्मान, उनके भविष्य और उनके परिवार की रोटी का सवाल बन चुका है। दो दशक तक बच्चों को पढ़ाने वाले ये गुरुजन आज सड़कों पर धरना देने को मजबूर हैं। उनकी आंखों में आंसू और दिल में पीड़ा है,कि जिन्हें उन्होंने अक्षरज्ञान दिया, वही समाज और व्यवस्था अब उन्हें भुला बैठा है।
हर शिक्षक दिवस पर जब देश गुरुजनों को सम्मानित करता है, तब शिक्षामित्र खुद को अपमानित महसूस करते हैं। काली पट्टी बांधकर विरोध करना उनकी मजबूरी है, क्योंकि उनकी आवाज़ सत्ता के गलियारों तक नहीं पहुँचती। कई शिक्षामित्र आर्थिक तंगी से जूझते हुए जान गंवा बैठे, लेकिन अब भी उनकी मांगें अधूरी हैं।
सोचिए, जो शिक्षक बच्चों का भविष्य बनाते हैं, उनका खुद का भविष्य अधर में क्यों है? सरकार और समाज को यह समझना होगा कि शिक्षामित्र कोई बोझ नहीं, बल्कि शिक्षा व्यवस्था की रीढ़ हैं। अगर आज भी उनकी पीड़ा अनसुनी की गई, तो यह आने वाली पीढ़ियों के साथ भी अन्याय होगा। अब वक्त है,कि उनकी आहों को सुना जाए और उनके जीवन को स्थायित्व व सम्मान मिले।
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