I Love Mohammad मोहब्बत का पैगाम: “आई लव मोहम्मद” से उठी आवाज़ और देश में भाईचारे का संदेश
I Love Mohammad आई लव मोहम्मद लिखने पर कानपुर में दर्ज मुकदमे ने पूरे देश में बहस छेड़ दी है। यह लेख मोहब्बत, भाईचारे और धार्मिक स्वतंत्रता का संदेश देता है। जानिए कैसे मोहम्मद साहब की तालीम इंसानियत और अमन की राह दिखाती है।
I Love Mohammad इंसानियत की बुनियाद मोहब्बत और इज्ज़त
I Love Mohammad भारत की गली-गली और कोने-कोने से आज एक ही पैगाम उठ रहा है “आई लव मोहम्मद।” यह सिर्फ़ एक नारा नहीं बल्कि करोड़ों दिलों की मोहब्बत का इज़हार है। चाहे हिंदू हों या मुसलमान, सिख हों या ईसाई हर मज़हब में मोहब्बत और इंसानियत को सबसे ऊपर माना गया है।
हाल ही में कानपुर में बारावफात के जुलूस के दौरान जब कुछ बच्चों ने “आई लव मोहम्मद” लिखा, तो उस पर मुक़दमा दर्ज किया गया। यह ख़बर सुनते ही देशभर में चर्चा छिड़ गई। लोग सवाल पूछने लगे कि क्या पैग़म्बर मोहम्मद साहब से मोहब्बत जताना जुर्म है? क्या किसी की धार्मिक भावनाओं को सम्मान देना गुनाह माना जा सकता है?
I Love Mohammad मोहम्मद साहब से मोहब्बत पूरी दुनिया का पैगाम
मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम केवल मुसलमानों के ही नहीं, बल्कि इंसानियत के पैग़म्बर हैं। उन्होंने दुनिया को अमन, बराबरी और भाईचारे का संदेश दिया। यही वजह है कि पूरी दुनिया में उनके चाहने वाले हैं।
I Love Mohammad दुबई की बुर्ज खलीफा पर भी “आई लव मोहम्मद” रोशनी से लिखा गया। यह नज़ारा देखकर दुनिया भर के लोगों की आंखें चमक उठीं। यह सिर्फ़ एक इमारत पर लिखा हुआ शब्द नहीं था, बल्कि अरबों दिलों की मोहब्बत का इज़हार था।
I Love Mohammad भारत की सरज़मीं और मोहब्बत की तालीम
भारत हमेशा से मोहब्बत और गंगा-जमुनी तहज़ीब की मिसाल रहा है। यहां कबीर ने कहा – “हिंदू कहे मोहि राम पियारा, तुरक कहे रहमान।” तुलसीदास और रहीम ने भी एक-दूसरे के धर्म का सम्मान किया। यही हमारे मुल्क की असली पहचान है।
आज जब कोई कहता है “आई लव मोहम्मद”, तो इसका मतलब यह नहीं कि वह किसी दूसरे धर्म का अपमान कर रहा है। बल्कि वह यह बता रहा है,कि पैग़म्बर मोहम्मद की तालीम सच बोलना, अमन कायम रखना, गरीबों की मदद करना और इंसानियत को ऊपर रखना उसके दिल में बसती है।
I Love Mohammad पुलिस प्रशासन की जिम्मेदारी

संविधान ने हर नागरिक को अपने धर्म और विश्वास के मुताबिक़ बोलने और जीने की आज़ादी दी है। पुलिस और प्रशासन का असली काम हर धर्म की सुरक्षा और सम्मान करना है। अगर किसी समाज को लगता है, कि उनकी आस्था पर चोट पहुंचाई जा रही है, तो यह पुलिस की जिम्मेदारी है,कि वह सच्चाई सामने लाए और इंसाफ करे।
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I Love Mohammad मगर यह भी सच है कि “आई लव मोहम्मद” जैसे शब्द से किसी को तकलीफ़ नहीं होनी चाहिए। यह मोहब्बत का इज़हार है, नफ़रत का नहीं। अगर ऐसे मामलों पर मुक़दमे दर्ज होंगे, तो समाज में गलत संदेश जाएगा और लोगों के दिलों में डर बैठ जाएगा।
मोहब्बत की ज़रूरत नफ़रत से कहीं ज़्यादा
आज के हालात में जब समाज में नफ़रत फैलाने की कोशिशें हो रही हैं, ऐसे में “आई लव मोहम्मद” कहना मोहब्बत की नई रौशनी जला देता है। यह पैगाम सिर्फ मुसलमानों के लिए नहीं बल्कि हर इंसान के लिए है। क्योंकि मोहम्मद साहब की तालीम इंसानियत से जुड़ी है।
I Love Mohammad अगर एक हिंदू भाई कहे कि “मैं मोहम्मद से मोहब्बत करता हूं” और एक मुसलमान भाई कहे कि “मैं राम से मोहब्बत करता हूं” – तो सोचिए समाज कितना खूबसूरत बन सकता है। यही असली हिंदुस्तान है, यही हमारी ताक़त है।
I Love Mohammad दुनिया को भारत से सीखने की ज़रूरत
भारत की पहचान उसकी एकता में है। यहां अलग-अलग धर्म, भाषा और रंग के लोग एक साथ रहते हैं। दुनिया आज भी भारत को एक मिसाल मानती है। अगर हम मोहब्बत और भाईचारा कायम रखेंगे, तो दुनिया को यह संदेश देंगे कि इंसानियत सबसे बड़ी ताक़त है।
“आई लव मोहम्मद” का नारा दरअसल एक इबादत है, एक मोहब्बत है,और इंसानियत के लिए एक पैगाम है।
न्यूज़ दिल से भारत की ओर से पैगाम
मैं, अख़्तर हुसैन, न्यूज़ दिल से भारत की तरफ से पूरे दिल से कहता हूं “आई लव मोहम्मद।” यह कहने का मतलब यह नहीं कि मैं किसी और धर्म का सम्मान नहीं करता, बल्कि यह कि मैं हर धर्म का आदर करता हूं। क्योंकि मोहब्बत बांटने से बढ़ती है और नफ़रत फैलाने से इंसानियत घटती है।
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हर भारतीय को यह समझना होगा कि हमारा असली धर्म इंसानियत है। जब तक हम एक-दूसरे की आस्था का सम्मान करेंगे, तब तक हमारा मुल्क मजबूत रहेगा।
“आई लव मोहम्मद” लिखने पर मुक़दमा दर्ज होना न केवल धार्मिक स्वतंत्रता के खिलाफ है, बल्कि समाज को बांटने की कोशिश भी है। पुलिस-प्रशासन को चाहिए कि वह इंसाफ करे और हर धर्म की आस्था की सुरक्षा करे।
आज ज़रूरत है,कि हम सब मिलकर मोहब्बत फैलाएं, क्योंकि यही हमारे संविधान, हमारी तहज़ीब और हमारे मुल्क की असली पहचान है।
यह लेख पूरी तरह स्वतंत्र विचार पर आधारित है। इसका उद्देश्य किसी भी धर्म, समाज या व्यक्ति की भावनाओं को ठेस पहुँचाना नहीं है। इसका मक़सद केवल मोहब्बत, भाईचारा और इंसानियत का संदेश देना है।
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