child preacher controversy नफ़रत भरे प्रवचनों पर सवाल: कम उम्र की कथावाचक साध्वी के बयान से देश में उठी बहस
child preacher controversy उत्तर प्रदेश में कम उम्र की कथावाचक साध्वी का विवादित बयान सोशल मीडिया पर वायरल। लक्ष्मण यादव के ट्वीट से बहस तेज, प्रशासन की चुप्पी सवालों में।
भारत को दुनिया एक ऐसे राष्ट्र के रूप में जानती है,जो धर्मनिरपेक्षता और विविधता में एकता का उदाहरण है। लेकिन हाल ही में उत्तर प्रदेश से आया एक वीडियो इस छवि पर सवाल खड़े करता है। इस वीडियो में एक कम उम्र की कथावाचक साध्वी धार्मिक मंच से ऐसा बयान देती नज़र आती हैं,जिसमें वे खुले तौर पर एक धर्म विशेष के बहिष्कार की अपील कर रही हैं।
child preacher controversy यह वीडियो सबसे पहले लक्ष्मण यादव (@LaxmanYadavINC) के ट्विटर हैंडल से सामने आया और देखते ही देखते सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। वीडियो में साध्वी का बयान इतना भड़काऊ था कि लोगों ने तुरंत सवाल उठाना शुरू कर दिया क्या यह संविधान की आत्मा को ठेस नहीं पहुंचाता?
child preacher controversy संविधान और धर्मनिरपेक्षता की भावना
भारत का संविधान हर नागरिक को चाहे वह किसी भी धर्म, जाति या समुदाय से जुड़ा हो समान अधिकार देता है।
अनुच्छेद 14: सबको कानून के सामने बराबरी का हक।
अनुच्छेद 25: धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार।
अनुच्छेद 19: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, लेकिन यह स्वतंत्रता दूसरों की भावनाओं को ठेस पहुँचाने या नफ़रत फैलाने का लाइसेंस नहीं है।
child preacher controversy ऐसे में जब धार्मिक मंच से कोई व्यक्ति चाहे साध्वी हों या मौलाना किसी एक समुदाय के बहिष्कार की बात करता है, तो यह सीधे तौर पर संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ है।

child preacher controversy सोशल मीडिया पर उठे सवाल
वीडियो सामने आते ही सोशल मीडिया पर लोगों का गुस्सा फूट पड़ा।
लक्ष्मण यादव ने वीडियो शेयर कर लिखा कि यह बयान भारत की गंगा जमुनी तहज़ीब पर हमला है, और प्रशासन को तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए।
कुछ यूज़र्स ने लिखा, “अगर यही बयान किसी मौलाना ने दिया होता, तो अब तक उस पर मुकदमा दर्ज हो चुका होता। लेकिन यहां पुलिस खामोश क्यों है?”
कई पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी सवाल उठाया कि क्या कानून सच में सबके लिए बराबर है?
child preacher controversy पुलिस और प्रशासन की चुप्पी
अब तक की जानकारी के अनुसार, इस मामले में पुलिस प्रशासन की तरफ से कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। न तो एफआईआर दर्ज हुई है, और न ही किसी तरह की जांच शुरू हुई है। यही वजह है कि लोग इस चुप्पी को लेकर और ज़्यादा सवाल उठा रहे हैं।
लोग पूछ रहे हैं
क्या प्रशासन केवल तब सक्रिय होता है,जब आरोप मुस्लिम समुदाय पर लगे हों?
क्या हिंदू धर्मगुरुओं को छूट दी जा रही है,कि वे मंच से कुछ भी बोलें और उन पर कोई कार्रवाई न हो?
क्या यह कानून के साथ दोहरा व्यवहार नहीं है
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child preacher controversy युवाओं और समाज की प्रतिक्रिया
आज का युवा भारत बदलाव की ओर देख रहा है। वह डिजिटल इंडिया, रोजगार, शिक्षा और तरक्की की बातें करता है। लेकिन जब धार्मिक मंच से नफ़रत फैलाने वाले भाषण सुनाई देते हैं, तो युवा खुद को असहज महसूस करता है।
एक छात्र ने लिखा
“हम नौकरी, शिक्षा और भविष्य की चिंता में हैं, और ये लोग हमें धर्म के नाम पर लड़ाने में लगे हैं। यह भारत की पहचान नहीं हो सकती।”
युवाओं की यह बेचैनी बताती है, कि देश की नई पीढ़ी नफ़रत नहीं, बल्कि एकता और विकास चाहती है।
child preacher controversy नफ़रत फैलाने वाले चाहे कोई भी हों
चाहे वह साध्वी हों, संत हों, कथावाचक हों या मौलाना अगर वे अपने मंच से नफ़रत फैलाने की कोशिश करते हैं, किसी धर्म विशेष के खिलाफ जहर उगलते हैं, तो उन्हें कानून के दायरे में लाना ज़रूरी है।
भारत के संविधान की सबसे बड़ी ताकत यही है,कि यह सबको बराबरी का अधिकार देता है। लेकिन अगर कुछ लोग धर्म के नाम पर नफ़रत फैलाने वालों को बचाते रहेंगे, तो यह देश के लिए खतरनाक साबित होगा।
child preacher controversy दुनिया की नज़र में भारत
भारत की पहचान हमेशा से एक सेकुलर और विविधताओं वाला देश रही है। लेकिन अगर बार-बार ऐसे वीडियो सामने आते रहे और सरकार व प्रशासन चुप रहे, तो दुनिया में भारत की छवि पर बुरा असर पड़ेगा।
क्या हम वही भारत दिखाना चाहते हैं, जहां कथावाचक बच्चों को नफ़रत सिखा रहे हों?
क्या हम वही भारत पेश करना चाहते हैं, जहां संविधान के अधिकार केवल कागज़ पर रह जाएं और असल में दोहरे मापदंड अपनाए जाएं?
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रास्ता क्या है,
1. प्रशासन की ज़िम्मेदारी: कानून सबके लिए समान होना चाहिए। अगर कोई साध्वी या मौलाना नफ़रत फैलाता है, तो उस पर कार्रवाई होनी चाहिए।
2. धार्मिक गुरुओं की भूमिका: धर्म का उद्देश्य इंसान को जोड़ना है, तोड़ना नहीं। अगर मंच से नफ़रत फैले तो उसकी सख्ती से निंदा होनी चाहिए।
3. जनता की जागरूकता: आम नागरिकों को भी ऐसे भाषणों का विरोध करना चाहिए और सोशल मीडिया पर आवाज़ उठानी चाहिए।
यह देश किसी एक धर्म का नहीं, बल्कि सबका है। हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी को बराबरी से जीने का हक है। अगर किसी मुस्लिम ने “I Love Mohammad” कहा तो उस पर मुकदमा होता है, लाठियां चलती हैं, घरों पर बुलडोजर चलते हैं। लेकिन जब एक साध्वी खुलेआम बहिष्कार की बात करती हैं, तो प्रशासन चुप रहता है,यह असमानता खतरनाक है।
भारत की ताकत उसकी एकता और भाईचारा है। हमें यही ताकत बचानी होगी।
डिस्क्लेमर
यह आर्टिकल सार्वजनिक रिपोर्ट्स और सोशल मीडिया पर उपलब्ध जानकारी पर आधारित है। उद्देश्य केवल तथ्य प्रस्तुत करना और समाज को एकता व भाईचारे की दिशा में जागरूक करना है। किसी धर्म या समुदाय को आहत करना इसका मकसद नहीं है।
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