CJI Gavai Shoe Throwing Case”न्याय के मंदिर में हंगामा! CJI गवई पर जूता फेंकने की कोशिश से कांप उठा सुप्रीम कोर्ट
CJI Gavai Shoe Throwing Case सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई बी.आर. गवई के सामने वकील द्वारा जूता फेंकने की कोशिश ने न्याय व्यवस्था को हिला दिया। जानिए, इस शर्मनाक कृत्य पर उस वकील को कितनी सजा हो सकती है, कौन-कौन सी धाराएं लगेंगी और बार काउंसिल क्या एक्शन ले सकती है।
CJI Gavai Shoe Throwing Case सुप्रीम कोर्ट में अभूतपूर्व हंगामा जब न्याय के मंदिर में टूट गई मर्यादा

देश के सर्वोच्च न्यायालय, सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को एक ऐसा वाकया हुआ जिसने पूरे न्यायिक तंत्र को हिला कर रख दिया। मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई (CJI B.R. Gavai) की बेंच में एक वकील ने अचानक आपा खो दिया और अदालत में जोर-जोर से चिल्लाने लगा। इतना ही नहीं, गुस्से में उसने जूता निकालकर CJI की ओर फेंकने की कोशिश की। यह घटना इतनी अप्रत्याशित थी कि कुछ क्षणों के लिए कोर्ट रूम में अफरातफरी मच गई।
CJI Gavai Shoe Throwing Case सुरक्षा कर्मियों ने तुरंत हरकत में आते हुए उस वकील को हिरासत में ले लिया और अदालत से बाहर कर दिया। लेकिन अब बड़ा सवाल यह है, कि न्यायालय की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाले इस कृत्य पर उस वकील को क्या सजा मिल सकती है?
क्या है, अदालत की मर्यादा और क्यों इसे तोड़ना बड़ा अपराध माना जाता है,
भारत का संविधान सुप्रीम कोर्ट को देश का सर्वोच्च न्यायिक संस्थान घोषित करता है। यह न केवल न्याय देने वाली संस्था है, बल्कि संविधान की आत्मा को संरक्षित करने वाली सबसे बड़ी ताकत भी है। ऐसे में कोर्ट परिसर में कोई भी व्यक्ति चाहे वह आम नागरिक हो या वकील अदालत की गरिमा भंग करता है, तो उसे Contempt of Court (अवमानना) के तहत सख्त सजा मिल सकती है।
CJI Gavai Shoe Throwing Case अदालत में अनुशासन और संयम बनाए रखना सिर्फ एक नियम नहीं बल्कि एक नैतिक जिम्मेदारी है। जब वही व्यक्ति जो न्याय के लिए लड़ता है, अदालत की गरिमा को अपमानित करता है, तो यह अपराध और भी गंभीर माना जाता है।
CJI Gavai Shoe Throwing Case वकील के खिलाफ क्या कार्रवाई हो सकती है?
इस मामले में वकील ने अदालत की कार्यवाही में बाधा डाली और मुख्य न्यायाधीश पर हमला करने की कोशिश की। ऐसे में उस पर कई कानूनी धाराएं लागू हो सकती हैं,
1. अवमानना अधिनियम, 1971 (Contempt of Court Act, 1971)
कोर्ट की गरिमा को ठेस पहुँचाने या अदालत की प्रक्रिया में बाधा डालने पर
अधिकतम 6 महीने की जेल या
2,000 रुपये तक का जुर्माना, या
दोनों सजाएं एक साथ दी जा सकती हैं।
2. भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 228
अदालत की कार्यवाही के दौरान न्यायाधीश के प्रति अपमानजनक व्यवहार करने पर
6 महीने तक की कैद या
1,000 रुपये तक का जुर्माना हो सकता है।
3. हमले या हमले की कोशिश (IPC की धारा 351, 352)
यदि वकील ने वास्तव में हमला करने की कोशिश की,
तो उसे 2 साल तक की सजा भी हो सकती है।
इसके अलावा, बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) भी इस पर स्वतः संज्ञान लेकर उस वकील की लाइसेंस रद्द या निलंबित कर सकती है, क्योंकि यह वकीलों की आचार संहिता का खुला उल्लंघन है।
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अदालत में जूता फेंकने की कोशिश सिर्फ गुस्सा नहीं, बड़ा अपराध
यह पहली बार नहीं है,जब अदालत में किसी ने इस तरह का व्यवहार किया हो, लेकिन सुप्रीम कोर्ट जैसी जगह पर यह घटना बहुत दुर्लभ है।
वकील का यह कदम न सिर्फ न्यायपालिका का अपमान है, बल्कि देश के संविधान की आत्मा पर चोट है।
कानूनी विशेषज्ञों के मुताबिक, यह घटना केवल कोर्टरूम का “हंगामा” नहीं बल्कि संसदीय लोकतंत्र की प्रतिष्ठा पर हमला है। सुप्रीम कोर्ट न्याय की अंतिम संस्था है, यहाँ इस तरह का व्यवहार लोकतांत्रिक मर्यादाओं की सीमा लांघना है।
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CJI Gavai Shoe Throwing Case न्यायपालिका में अनुशासन का महत्व
अदालत एक ऐसा स्थान है,जहाँ केवल तर्क और साक्ष्य की भाषा बोली जाती है, न कि गुस्से और भावनाओं की।
हर वकील का दायित्व है, कि वह अदालत में शांत, सम्मानजनक और मर्यादित व्यवहार करे।
न्यायाधीशों पर व्यक्तिगत टिप्पणी या हमला करना अदालत की स्वतंत्रता पर हमला माना जाता है।
सुप्रीम कोर्ट कई बार कह चुका है,कि अदालत की गरिमा को बनाए रखना कानूनी पेशे की आत्मा है।
CJI Gavai Shoe Throwing Case ऐसे मामलों में सख्त कार्रवाई सिर्फ एक व्यक्ति को सजा देने के लिए नहीं बल्कि दूसरों को चेतावनी देने के लिए भी जरूरी है, कि अदालत का अपमान किसी भी रूप में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
CJI Gavai Shoe Throwing Case बार काउंसिल का रुख क्या हो सकता है?
घटना के बाद बार काउंसिल ऑफ इंडिया और दिल्ली बार काउंसिल भी इस मामले की जांच शुरू कर सकते हैं। वकील का व्यवहार पेशेवर आचार संहिता के खिलाफ है, इसलिए उसका एनरोलमेंट सस्पेंड किया जा सकता है।
अगर जांच में यह साबित हो जाता है, कि उसने जानबूझकर सीजेआई पर हमला करने की कोशिश की, तो उसका लाइसेंस स्थायी रूप से रद्द किया जा सकता है।
CJI Gavai Shoe Throwing Case अदालत की गरिमा न्याय व्यवस्था की नींव
इस घटना ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है,कि जब न्याय का रक्षक ही अदालत की गरिमा तोड़ दे, तो व्यवस्था पर क्या असर पड़ता है?
अदालत सिर्फ कानून का घर नहीं है, यह विश्वास का प्रतीक है।
यहाँ न्याय की देवी आंखों पर पट्टी बांधकर बैठती है ताकि किसी के प्रति पक्षपात न हो लेकिन अगर उसके सामने कोई मर्यादा लांघे, तो यह केवल कानून नहीं, बल्कि देश की आत्मा का अपमान होता है।
सुप्रीम कोर्ट में हुआ यह हंगामा सिर्फ एक “इंसीडेंट” नहीं, बल्कि एक चेतावनी है,कि न्याय के मंदिर में अनुशासन और सम्मान कितना जरूरी है।
CJI Gavai Shoe Throwing Case वकील के इस कृत्य से न सिर्फ उसकी प्रतिष्ठा गई बल्कि यह पूरे वकालत पेशे पर एक धब्बा छोड़ गया है।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि सुप्रीम कोर्ट इस पर कितना सख्त रुख अपनाता है, लेकिन इतना तय है, कि कोर्ट की गरिमा से खिलवाड़ करने की कीमत बहुत भारी पड़ सकती है।
Disclaimer:
यह लेख केवल सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है। इसमें दी गई जानकारी न्यायालय और कानून के सामान्य प्रावधानों पर आधारित है। किसी भी व्यक्ति या संस्था की मानहानि या पूर्वाग्रह उत्पन्न करना इसका उद्देश्य नहीं है। अंतिम निर्णय और कार्रवाई का अधिकार सुप्रीम कोर्ट एवं संबंधित न्यायिक संस्थाओं के पास सुरक्षित है।
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